Sunday, May 6, 2007

साला फिर प्यार हो गया ..........................

गज़ब बवाल है भाई। शरीफ़ आदमी शराफत से रह नहीं सकता। ये पापी दुनिया, ज़ालिम ज़माना और बैरन ख़ुदाई, जान ले लो गरीब की। मै कह्या जी मैं नी करना, जाण दो, पड़े रेण दो मैनू साढी गण्दी चादराँ विच। पर जी मजाल है जो ये छोटा सा दिल और इसका शैतान दोस्त म्हारी बात सुने॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰तो लो जी बाऊजी, फिर से लागा दिता ये प्यार वाला रोग। साला चौथी क्लास मे था जब पहली बार इसका अटैक हुआ था, वो दिन है और आज का दिन भाई साब इस बीमारी से निजात तो छोड़ो टेम्परेरी राहत नक नहीं मिली है। एक बैक्टीरिया का ईलाज़ खोजा नहीं कि दूसरा वाईरस तैयार ॰॰॰॰॰
वैसे इस लेटेस्ट 'प्यार वाले वाइरस' के बारे में बताने से पहले मै ये बताना चाहूँगा कि मै इस बीमारी का क्रोनिक पेशिएन्ट हूँ। तब शायद मैं चौथी क्लास मे पढ़ता था, दिव्या भारती का फैन था, पिताजी से छिप कर मस्त कन्ची खेलता था, चुरा-चुरा कर मामा जी की 'केवल बालिगों के लिये' वाली पुस्तकें पढ़ता था और क्लास की बालिकाओं, मोहल्ले की मेनकाओं तथा कालोनी की आन्टियों पर चुपके से नज़र फेर लेता था। मेरे घर से स्कूल जाने के लिये रिक्शा लगा हुआ था पर मैं हमेशा देर कर देता था जिससे कि टेम्पो मे जाना पड़े, टेम्पो मे क्यों--क्योंकि टेम्पो में वो वाला गाना बजता था " ऽऽ ओऽऽ बिजली चली जाये, अन्धेरा ही अन्धेरा " बस ये गाना सुनते ही मेरी आंखोँ के सामने बिजली सी चमक जाती थी और मुझे लगता था कि मैं हीरो हूँ और वहाँ दिव्या भारती बनी मेरी ख्वाबों की मल्लिका दिल की शहज़ादी बनी मेरी हिस्ट्री वाली मिस प्यार से मेरे गालों पर चाटों की बरसात कर रही हैं। कितना विहंगम, रोमान्टिक और पारिवारिक दृश्य है। न कोई अश्लीलता न कोई ऐक्सपोज़र॰॰॰॰॰॰